Friday, March 20, 2015

जन लोकपाल आंदोलनकारी सुनीता का हमला, बोलीं-AK को नहीं पसंद है विरोध

नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सामने आए ऑडियो टेप के बाद उनके व्यक्तित्व को लेकर कई तरह की बातें होने लगी हैं। केजरीवाल पर उनकी ही पार्टी के पूर्व विधायक राजेश गर्ग ने आरोप लगाया था कि पिछले साल इस्तीफा देने के बाद केजरीवाल चाहते थे कि कांग्रेस के विधायक टूटकर उन्हें समर्थन दें। इस बात के सामने आने के बाद कई लोग उनकी ईमानदारी पर सवाल भी उठा रहे हैं। हालांकि, आम आदमी पार्टी मजबूती से उनके साथ खड़ी है। लेकिन अरविंद के साथ काम कर चुके और काम कर रहे कुछ लोगों ने उनके बारे में अपना नजरिया जाहिर किया है। उस पर नजर डालिए:



पार्टी बनाने का फैसला आम सहमति से नहीं 
सुनीता गोदारा का कहना है कि अरविंद की कई बातें उनको पंसद नहीं आती थीं। सुनीता के मुताबिक, 'भूख हड़ताल के 12 वें दिन पार्टी बनाने का फैसला लिया गया, लेकिन आईएसी की 24 सदस्यीय कोर कमेटी में इसको लेकर कोई चर्चा नहीं की गई। अरविंद ने कुछ लोगों के साथ पार्टी के गठन का फैसला ले लिया। अन्ना भी इसके खिलाफ थे, लेकिन अरविंद ने पार्टी बनाने का फैसला ले लिया और घोषणा कर दी।' सुनीता ने कहा कि ये गलत है कि राजनीतिक पार्टी के गठन में अन्ना की सहमति थी। आंदोलन के 12 वें दिन अन्ना ने मुझे और कोर कमेटी के सदस्यों को दो पेज का लेटर दिया, जिसमें कांग्रेस के गठन के समय महात्मा गांधी के विचार के बारे में लिखा था। अन्ना अंत तक पार्टी बनाने के खिलाफ थे।
अरविंद को विरोध पसंद नहीं 
सुनीता गोदारा का कहना है कि अरविंद में कई बदलाव आए हैं। उनके मुताबिक, योगेंद्र और प्रशांत भूषण को पीएसी से बाहर करने का साफ मतलब है कि उन्हें आलोचक पसंद नहीं हैं। गोदारा के अनुसार अरविंद उन लोगों को पसंद करते हैं जो ये कहते हैं कि 'तुम हो तो मैं हूं', लेकिन अरविंद उन लोगों को पंसद नहीं करते हैं जो कहते हैं, 'माना की तुम तो हो लेकिन हम भी हैं।'
काबिलियत पर शक नहीं
सुनीता गोदारा के मुताबिक अरविंद की काबलियत पर अब भी शक नहीं है, लेकिन वे चौकड़ी से घिर गए हैं। गोदारा का कहना है कि अरविंद केजरीवाल का लोगों से कम्युनिकेशन बंद हो गया है, लेकिन आदंलोन के समय ऐसा नहीं था। अगर प्रशांत भूषण जैसे लोगों को मिलने के लिए समय लेना पड़े तो आप समझ सकते हैं कि क्या स्थिति है। अरविंद आंदोलन के दौरान जमीन से जुड़े रहते थे। चाहे किसी के सम्मान करने की बात हो या फिर किसी समस्या का समाधान वह तैयार रहते थे, लेकिन सत्ता और सरकार की लड़ाई में वे शायद बदल गए हैं। गोदारा के अनुसार अरविंद अगर पार्टी नहीं बनाते तो आज वे ज्यादा प्रभावी होते और सरकार को उनकी बातें माननी पड़ती।

बाकियों से अलग नहीं 
बिजली-पानी जैसे मुद्दे पर अरविंद की सरकार फैसले जरूर ले रही है, लेकिन कॉमनवेल्थ घोटाले में शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी के मुद्दे पर पार्टी की रणनीति कहीं दिखाई नहीं देती है। इसी मुद्दे को लेकर आईएसी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। गोदारा सवाल पूछती हैं, 'क्या बड़े कॉर्पोरेट के खिलाफ कार्रवाई को लेकर पार्टी अपने पुराने मुद्दे पर कायम हैं?' उनके मुताबिक, हाल की घटनाओं से इंटरनल डेमोक्रेसी की बात बेमानी लग रही है। गोदारा के अनुसार पार्टी में जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं उससे भागने के बजाय ईमानदारी से जवाब देने और हल करने की जरूरत है, जो शायद नहीं हो रहा है। अरविंद केजरीवाल शायद सरकार में हैं, लिहाजा पारदर्शिता और शुचिता की बात खत्म हो गई है।

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